हंसों के वंशज

दो रोटी की ख़ातिर जीवन क्यों दफ़्तर के नाम कर दिया?   हंसों के वंशज हैं लेकिन कव्वों की कर रहे ग़ुलामी यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन होती देख रहे नीलामी दर्पण जैसे निर्मल मन को क्यों पत्थर के नाम कर दिया   पाने का लालच क्या जागा गाँव की गठरी भी खो बैठे स्वाभिमान, … Continue reading हंसों के वंशज